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जैसलमेर (राजस्थान).  सोने सी चमकती रेत के बीच राजस्थान में एक ऐसी जगह है जो यहां पहुंचने वाले हर टूरिस्ट को अपनी तरफ खींचती है। लेकिन पिछले लंबे वक्त से इनकी ओर ध्यान नहीं देने से ये ऐतिहासिक धरोहर का नष्ट होती जा रही है। राजस्थान के राजा-महाराओं द्वारा बनाई गई इस विरासत की एक अलग पहचान है। हालांकि इसे कम लोग ही जानते हैं। कहां है ये जगह...


- इस जगह का नाम है बड़ाबाग। थार के रेगिस्तान में बनी ये छतरियां सूरज की किरणों के साथ सोने सी चमकती दिखाई देती हैं।

- यहां पहुंचकर सैल्फी लेते लोगों को शायद ये नहीं मालूम कि ये जैसलमेर के रियासत काल में राजा-महाराजाओं की श्मशान भूमि थी।

- यहां राजपरिवार के सदस्यों की मृत्यु के बाद दाह संस्कार कर छतरी का निर्माण करवाया जाता है।

- बेहतरीन स्थापत्य कला के कारण अब यह छतरियां आमजन के साथ पर्यटकों की भी पसंद बन गई हैं।

नवविवाहितों के फोटो सेशन की पहली पसंद

- बड़ाबाग की छतरियां नवदंपतियों की भी पहली पसंद में शुमार है।

- अपनी कलाकृति के लिए विशेष स्थान रखने वाले बड़ाबाग की छतरियों पर जैसलमेर का शायद ही ऐसा कोई नवदंपति होगा जिनके फोटो नहीं होंगे।

- खेतपाल पूजन के बाद नवदंपति बड़ाबाग की छतरियों में फोटो सेशन करवाते हैं।

रेगिस्तान के बीच बनाया था गार्डन

-  बड़ा बाग जैसलमेर से करीब 6 किलोमीटर दूर है। जिसे यहां के राजा ने बनवाया था।

- जैसलमेर की खौज करने वाले राजा जयसिंह की मौत के बाद उनके बेटे ने यहीं उनका अंतिम संस्कार किया।

- जिसके बाद रेगिस्तान के बीच यहां एक बड़ा गार्डन (बड़ा बाग) भी बनाया गया। और एक छतरी स्थापित की गई। 

- इसके बाद यहां कई राजा-महाराजाओं का अंतिम संस्कार किया गया। 

- ये छतरियां भी इन सभी की याद में बनाई गई हैं।



जैसलमेर। अकाल का साथी माने जाने वाले जैसलमेर के बड़ा बाग गांव मे विषम भौगोलिक क्षेत्र, प्रतिकूल परिस्थितियां व पानी की कमी के बीच विकसित हुए भांति-भांति के उन्नत किस्मों के फलों के पेड़ देखकर हर कोई दंग रह जाता है। यूं तो जिले में इंदिरा नहर का आगमन तीन दशक पहले हुआ है, लेकिन रियासतकाल के दौरान यहां आधुनिक कृषि पद्धत्ति की समझ लोगों में थी। 

इसका प्रमाण आज भी बड़ा बाग गांव में देखने को मिलता है। जानकारो के अनुसार यहां के किसान उस समय भी अत्याधुनिक मानी जाने वाली "ड्रिप इरिगेशन" प्रणाली का प्रयोग करते थे। जैसलमेर से पांच किमी दूर रामगढ़ मार्ग पर स्थित बड़ा बाग गांव मे अकाल की छाया व सूखे की स्थिति से जूझने के बावजूद स्थानीय वाशिन्दों को कभी आम, खजूर, जामुन व अन्य फलों व सब्जियों से वंचित नहीं होना पड़ा। 

दूरदर्शिता व विवेकशीलता 
जिले की ग्राम पंचायत अमरसागर में आने वाले इस उद्यान को बनाने से पूर्व निर्माणकर्ताओं ने विशेष स्थान का चयन किया था। वर्तमान में किसानों के लिए आधुनिक मानी जाने वाली ड्रिप इरिगेशन प्रणाली का उपयोग यह साबित करता है कि रियासतकालीन लोगो मे वानिकी को लेकर काफी ज्ञान व कार्य कुशलता थी।

यहां बाग निर्माण के दौरान करीब 60 से 70 फीट जमीन की खुदाई की गई और उसमें कश्मीर व नेपाल से मंगवाई गई विभिन्न किस्मों के पौधे रोपित किए गए। इसके अलावा 11 बीघा भूमि में उगे प्रकृति के खजाने की सुरक्षा के लिए 20 फीट ऊंची दीवार व 100 फीट लंबी दीवार बनाई गई। मरूप्रदेश में भी दुर्लभ किस्मों को न केवल उगाने बल्कि उनसे फल प्राप्त करने मे सफलता हासिल की गई। 

प्राकृतिक सुरक्षा
जमीन की गहराई में होने के कारण इनकी जड़ें पानी को जमीन में आसानी से खींच लेतीं, वहीं ऊंचाई से आने वाली गर्म हवा, लू व आंधी से इसकी रक्षा हो जाती थी। बाग के समीप वर्ष 1585 में महारावल जैतसिंह ने तालाब का निर्माण करवाया था। पानी का सार्थक उपयोग करने के लिए तालाब को बांध से रोका गया था।

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